भारत के 41वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम ने भारतीय फिल्मों का दुनिया भर में बाजार विकसित करने के लिए गोवा के मेरियट रिजार्ट में चार दिवसीय फिल्म बाजार इंडिया, 2010 का आयोजन किया है। इसमें पहली बार अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में भारतीय फिल्मकारों की भागीदारी बढ़ाने के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में आज लोकार्नो अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव के निदेशक ओलिवर पेरे ने घोषणा की कि अगले वर्ष गोवा में होने वाले भारत के 42वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह से लोकार्नो फिल्म समारोह का एक विशेष पैकेज प्रदर्शित किया जाएगा। उन्होंने दुनिया भर के फिल्मोत्सवों में भारतीय फिल्मों की कम होती भागीदारी पर चिंता व्यक्त की।
Director Godard |
गोवा फिल्मोसव की सबसे खास बात यह है कि जिन फिल्म प्रेमियों को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म समारोह – कान फिल्मोत्सव (फ्रांस) – में जाने का अवसर नहीं मिला, उनके लिए वहां से चुनी हुई दस फिल्मों का एक विशेष खंड प्रदर्शित किया जा रहा है। इसमें फ्रेंच न्यू वेब के प्रमुख फिल्मकार ज्यां लुक गोदार की नई फिल्म ‘फिल्म सोशियलिज्म’ और मशहूर ईरानी फिल्मकार अब्बास किरस्तामी की पुरस्कृत फिल्म ‘सर्टीफाइड कॉपी’ शामिल हैं। अन्य फिल्मों में ‘आउटरेज’ (ताकेशी किटानो), वी आर व्हाट वी आर (सबना गज्जंती), यंग गर्ल्स इन ब्लैक (जीन पाल सिवेयरेक), रूट आइरिश (केन लोच), ए स्क्रीमिंग मैन (महामत सलेह हारून), द ट्री (जूली बर्तुसेली), द सिटी (क्रिस्टोफ होचस्टर) आदि।
भारत सरकार की सिनेमा से जुड़ी सभी संस्थाओं-एजेंसियों को अब लगने लगा है कि बाजार ही उनका अस्तित्व बचाए रख सकता है। फिल्म प्रभाग पिछले 60 वर्षों में बनी फिल्मों का वेबकास्ट जारी करने वाला है। प्रभाग द्वारा बनाई गई फिल्मों की मार्केटिंग के लिए एन एफ डी सी के साथ समझौता किया गया है। करीब 110 करोड़ की लागत से बनने वाले देश के अनूठे सिनेमा संग्रहालय बनाने का जिम्मा भी सरकार ने फिल्म प्रभाग को सौंपा है। फिल्म प्रभाग आज से शास्त्रीय नृत्य एवं नृत्य गुरुओं पर बनी फिल्मों का उत्सव शुरू कर रहा है। प्रभाग के महानिदेशक कुलदीप सिन्हा ने उम्मीद जताई है कि भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष 2013 में सिनेमा संग्रहालय फिल्म प्रेमियों के लिए उपलब्ध हो जाएगा। यह संग्रहालय मुंबई में बनाया जा रहा है।
भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सवों में राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय (NFAI, Pune) पुणे की बड़ी भागीदारी होती है। इस बार कई फिल्मों को फिर से संरक्षित किया गया है। ऐसी 5 फिल्में गोवा में प्रदर्शित की जा रही हैं, जिनमें 1931 में बनी पी वी राव की मूक फिल्म ‘मार्तण्ड वर्मा’ और मृणाल सेन की ‘बाईशे श्रावण’ प्रमुख हैं। एन एफ ए आई ने पणजी की कला अकादमी में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित फिल्मी हस्तियों पर एक महत्वपूर्ण पोस्टर प्रदर्शनी भी लगार्इ है। इसमें पहली बार पुरस्कृत देविका रानी (1969) से लेकर इस बार पुरस्कृत डी रामानायडू (2009) तक की यात्रा को प्रदर्शित किया गया है। इन फिल्मी हस्तियों से जुड़ी फिल्मों के दुर्लभ पोस्टरों को देखना एक अलग तरह का अनुभव है। बाजार में इन पोस्टरों की कीमत अब काफी बढ़ गई है। इस प्रदर्शनी से पता चलता है कि सुप्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वीराज कपूर को 1971 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड दिया गया था। इसके अगले ही साल (1972) उनका निधन हो गया। यही घटना उनके बड़े बेटे राज कपूर के साथ घटी। जिन्हें 1987 में यह सम्मान मिला और अगले ही साल (1988) उनका निधन हो गया। इस प्रदर्शनी में सत्यजीत राय, अडूर गोपालकृष्णन, श्याम बेनेगल, अशोक कुमार, लता मंगेशकर आदि की फिल्मों के दुर्लभ पोस्टर लगाए गए हैं।
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज द्वारा आयोजित ‘द बिग पिक्चर वर्कशाप’ में इस बात पर काफी चर्चा हुई कि यूरोप अमेरिका की बजाय एशिया-अफ्रीका में भारतीय फिल्मों के बाजार की अधिक गुंजायश है। फिल्म निर्माण और वितरण से जुड़े अधिकतर लोगों का कहना है कि गोवा में इन देशों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाना चाहिए।
गोवा में कुछ अविस्मरणीय कालजयी फिल्मों को बड़े परदे पर दोबारा देखने का आनंद भी अलग तरह का है। मशहूर अभिनेता अशोक कुमार की याद में बिमल राय की फिल्म ‘बंदिनी’ का विशेष प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म सचिन देव बर्मन के विलक्षण संगीत के कारण भी याद की जाती है। इस अवसर पर अशोक कुमार की पोती अनुराधा पटेल और उनके भाई सुप्रसिद्ध गायक के बेटे किशोर कुमार के बेटे अमित कुमार ने ठीक ही कहा कि ‘दादामुनि भारत के पहले रैपस्टार थे। बीना राय की स्मृति में ‘अनारकली’ को देखना एक अलग अनुभव है।
गोवा फिल्मोत्सव में एक तरफ जहां यूरोप की आधुनिक फिल्में हैं तो वहीं दूसरी तरफ भारत की क्लासिक फिल्में भी हैं। आधुनिकता और परम्परा के बीच सिनेमा पर कई बहसें भी चल रही हैं। लाख टके का सवाल यह भी है कि इतने सारे भगीरथ प्रयासों के बावजूद हिन्दी सिनेमा की कोई विशेष पहचान विश्व–स्तर पर क्यों नहीं बन पा रही है। यहां दुनिया भर से आए फिल्मकारों से बात कीजिए, वे सत्यजीत राय, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन से लेकर गौतम घोष तक की बातें तो करेंगे लेकिन हिन्दी फिल्मकारों के बारे में वे कुछ नहीं जानते।
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